दुनिया में विभिन्न प्रकार के पर्वत तथा पर्वत मालाएं हैं जिनमें सबसे ऊंचा पर्वत माउंट एवरेस्ट माना जाता है, जो प्राचीन काल से हिमालय की पर्वत श्रृंखला में स्थित है। माउंट एवरेस्ट वर्तमान समय में चीन और नेपाल किस सीमा रेखा को निर्धारित करता है, किंतु इसका अधिकांश भूभाग नेपाल में पड़ता है माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई के बारे में पूरी दुनिया जानती है, कि यह विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है किंतु आपको यह बात बिल्कुल भी नहीं पता होगी कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई विभिन्न कारणों से लगातार बढ़ती जा रही है। आज के इस लेख में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने के विभिन्न कारणों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी हो सकती है। इसलिए यदि आप माउंट एवरेस्ट से संबंधित विभिन्न रहस्यमई तथ्यों को जानना चाहते हैं, तो आपको हमारे इस लेख का अध्यान अंतिम लाइन तक करने की आवश्यकता है क्योंकि माउंट एवरेस्ट दुनिया का एक ऐसा पर्वत है, जो विभिन्न प्रकार के राज्यों से भरा हुआ है क्योंकि जहां काली एक झील हुआ करती थी वहां पर धीरे-धीरे एक पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ और आज दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत उसे झील पर बन गया है, जहां पर करें समतल तथा गहरी पानी की झील हुआ करती थी।
हमारे पृथ्वी पर विभिन्न रहस्य ऐसे भी हैं जिनके बारे में अभी तक हमें कोई भी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं हुई माउंट एवरेस्ट की उत्पत्ति के बारे में कई संदर्भ और सिद्धांत हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह शिखर भू-तत्वों के गतिविधियों के कारण विकसित हुआ है। लगभग 50 करोड़ वर्ष पहले, एशिया महाद्वीप उत्तरी तथा दक्षिणी भागों के संघटनात्मक परिवर्तन के कारण एक विशाल महासागर भूमि में समायोजित था। माउंट एवरेस्ट के बारे में एक सिद्धांत यह है कि यह भू-तत्वों के एक समूह के ऊपर बना है, जिसमें भू-सागरीय तथा खानिज तत्वों के बहुत सारे घुलामित शैल शामिल थे। इस समूह को ‘टेक्टोनिक प्लेट’ कहा जाता है, और इसके कारण भू-तत्वों के एक श्रृंखला में तथा उनके बीच में समस्त गतिविधियाँ घटित होती हैं। एक समय आया जब टेक्टोनिक प्लेटों के मिलने और भिन्न होने के कारण एक विशाल भू-तत्व उत्पन्न हुआ, जिसे हम माउंट एवरेस्ट के रूप में जानते हैं। यह पर्वत लगभग 64 मिलियन वर्ष पहले तीन बड़ी भू-तत्वों के मिलने से उत्पन्न हुआ, जिनमें गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के साथ हिमालयी पर्वत भी शामिल थे। जिस तरह के भू-तत्विक प्रक्रियाएं दिन-प्रतिदिन जारी रहती हैं, माउंट एवरेस्ट भी अपनी स्थिति और ऊंचाई में परिवर्तन करता रहता है। वैज्ञानिक और भूगोलविद्यार्थियों के अनुसंधानों के अनुसार, इसकी वर्तमान ऊंचाई लगभग 8848 मीटर (29,028 फुट) है। यहां तक कि आने वाले युगों में भी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में परिवर्तन हो सकता है, क्योंकि भू-तत्वों की स्थिति और चाल कायम रहती हैं और इसके कारण पर्वतीय भू-कल्पनाएं भी बदलती रहती हैं।
माउंट एवरेस्ट क्या है?
माउंट एवरेस्ट हिमालय का एक विशाल पर्वत है जो विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है यह तिब्बत नेपाल का था चीन की सीमा रेखा को निर्धारित करता है देखने पर माउंट एवरेस्ट तीन तरफा पिरामिड की तरह दिखाई देता है। इन तीनों पिरामिड के सरफेस को फेस कहा जाता है, और दो फेस को आपस में मिलाने वाली रेखा को रिज कहते हैं माउंट एवरेस्ट के 2 फेस तिब्बत की तरफ तथा एक केस नेपाल की तरफ फैला हुआ है। इसका निर्माण आधुनिक समय से लगभग 40 से 50 मिलियन वर्ष पूर्व शुरू हुआ था हिमालय के स्थान पर पहले टेथिस सागर था जो भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट से बना हुआ था, विशेषज्ञों का मानना है कि जब पृथ्वी के अंदर हलचल हुई और भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट आपस में टकराई तो पृथ्वी के अंदर के अत्यधिक दबाव के कारण टेथिस सागर का यह हिस्सा ऊपर की ओर उठने लगा हिमालय पर्वत श्रेणी माउंट एवरेस्ट के नीचे एशियन प्लेट के नीचे भारतीय टेक्टोनिक प्लेट दबाव के कारण ऊपर उठ गई और पश्चिम से पूर्व तथा दक्षिण से पूर्व के लगभग 2400 किलोमीटर के भूभाग में एक चाप के रूप में फैल गई इस प्रकार एक सागर ने पर्वत श्रेणी का रूप ले लिया। प्रारंभिक समय में हिमालय पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची पर्वत माउंट एवरेस्ट की खोज 1830 से 1843 तक भारत के ब्रिटिश सर्वेक्षक रहे जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट ने की थी और इन्हीं के नाम पर किस पर्वत का नाम माउंट एवरेस्ट रख दिया गया नेपाल में इसे सागरमाथा नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है आकाश का मस्तक तथा तिब्बत में इसे चोमोलुंगमा नाम से पुकारा जाता है, जिसका अर्थ होता है पहाड़ों की देवी।
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माउंट एवरेस्ट का इतिहास
माउंट एवरेस्ट का इतिहास लगभग 40 से 50 मिलियन वर्ष पुराना है, प्राचीन काल में माउंट एवरेस्ट की पूरी हिमालय पर्वत श्रेणी के स्थान पर टेथिस सागर हुआ करता था जिस का निचला हिस्सा भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट के मिलने से बनता था। यह सागर प्राचीन काल से ही पृथ्वी पर उपस्थित था किंतु लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व सागर में हलचल तथा पृथ्वी के अंदर के हिस्से में हलचल होने के कारण भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट आपस में टकरा गए जिसके कारण पृथ्वी के अंदर दबाव उत्पन्न हुआ और टेथिस सागर का हिस्सा परवलयाकार आकार में ऊपर की ओर उठने लगा और धीरे-धीरे आधुनिक हिमालय तथा माउंट एवरेस्ट के रूप में परिवर्तित हो गया। 1830 से 1843 तक भारत के ब्रिटिश सर्वेक्षक रहे जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट ने एवरेस्ट की खोज की थी उस समय माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई उन्होंने 1856 में लगभग 8840 मीटर ज्ञात किया था, उसके पश्चात विभिन्न बार भिन्न-भिन्न देशों द्वारा माउंट एवरेस्ट की लंबाई ज्ञात की गई 1952 और 1954 के बीच भारत के सर्वेक्षण द्वारा एवरेस्ट कि ऊचाई को 29,2828 फीट (8,848 मीटर) जिसको लगभग 1999 तक विभिन्न एजेंसियों द्वारा इसका प्रयोग किया गया किंतु वर्ष 1999 के अंत होने पर कई देशों और एजेंसिओं ने पहाड़ की ऊंचाई को फिर से मापने का प्रयास किया था। सन 1999 में अमेरिकी नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी और अन्य ने एक अमेरिकी सर्वेक्षण में जीपीएस उपकरण का उपयोग करके पहाड़ की सटीक उंचाई को माप लिया था जो कि 29,3535 फीट लगभग 8850 मीटर जिसमें 2 मीटर लगभग 6.5 फीट को प्लस माइनस माना जाता है। वर्तमान समय में कुछ एजेंसियों द्वारा माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को 8848.86 मीटर बताया गया है।
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई
सन 1856 में भारत के 1830 से 1843 तक ब्रिटिश सर्वेक्षक रहे जर्नल सरचार्ज एवरेस्ट ने माउंट एवरेस्ट हिमालय की सबसे ऊंची चोटी की खोज की थी। उस समय उन्होंने इसकी ऊंचाई लगभग 8840 मीटर ज्ञात किया था उसके पश्चात विभिन्न एजेंसियों द्वारा अलग-अलग समय पर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई ज्ञात की गई है। ऐसा माना जाता है कि माउंट एवरेस्ट प्रत्येक साल 1 इंच ऊंचा होता जा रहा है, इसलिए जितने समय माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई ज्ञात की गई है वह अलग-अलग प्राप्त हुई है 1952 से 1954 के बीच भारत के सर्वेक्षण द्वारा एवरेस्ट की ऊंचाई को 8848 मीटर ज्ञात किया गया था, जिसे विभिन्न एजेंसियों तथा देशों द्वारा 1999 तक जानकारी के रूप में प्रयोग किया गया किंतु वर्ष 1999 के अंत में कई देशों और एजेंसियों ने माउंट एवरेस्ट को फिर से नापने का प्रयास किया और अमेरिका नेशनल ज्योग्राफी सोसायटी और अन्य एक अमेरिकन सर्वेक्षण में जीपीएस उपकरण का उपयोग करते हुए पहाड़ की सटीक उचाई को नापा गया, जिसमें माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8850 इंटर मापी गई जिसमें लगभग 6.5 फीट को प्लस या माइनस माना जाता है, जो लगभग 2 मीटर के होता है इसलिए 2000 के लगभग एजेंसियों द्वारा माफी गई लंबाई के अनुसार माउंट एवरेस्ट को लगभग 8848.86 मीटर ऊंचा माना जाता है, तो आज आपको हिमालय पर्वत श्रेणी के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई के बारे में पता लग गया होगा जो कि विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी मानी जाती है।
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माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर जाने वाले सबसे पहले व्यक्ति
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई इतनी अधिक है कि वहां पर पहुंचना सभी के बस की बात नहीं होती है, इसलिए माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने से पहले एक विशेष प्रकार के ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है जिसके पश्चात ही आप माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पर जा सकते हैं और माउंट एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर समुद्र तल की अपेक्षा एक तिहाई ऑक्सीजन उपस्थित होती है। जिसमें सरवाइव करना किसी सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है, इसलिए माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़ना असंभव माना जाता है, किंतु फिर भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्होंने माउंट एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर चढ़कर विश्व रिकॉर्ड बनाया हुआ है। 2017 तक की रिपोर्ट के अनुसार माउंट एवरेस्ट पर लगभग 7600 लोग चढ़ चुके हैं और लगभग 300 लोगों ने इसकी चढ़ाई करते समय अपनी जान गवा दी है माउंट एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर सन 1953 में सबसे पहले पहुंचने वाले व्यक्ति तथा पर्वतारोही न्यू ज़ीलैंडर एडमंड हिलेरी और शेरपा टेनज़िंग नोर्गे थे।
माउंट एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर माउंटिंग करना आज के व्यक्तियों का एक शौक हो गया है फिर भी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना आसान नहीं है, क्योंकि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करते समय जितना अधिक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक आपके पास आर्थिक रूप से भी मजबूती होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई में सभी इक्विपमेंट और ट्रेनिंग सहित लगभग ₹8000000 का खर्चा लगता है। इसके साथ ही बहुत अधिक शारीरिक श्रम भी लगता है एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए लगभग 40 दिन का समय लगता है, जिसमें यदि आप 9 से 10 दिन बेस कैंप में बिताते हैं तो लगभग यह समय 50 दिन का हो जाता है और जैसे-जैसे आप 5000 मीटर की ऊंचाई पर बढ़ते जाते हैं। ऑक्सीजन का घनत्व कम होता जाता है और ऊंचाई पर जाते-जाते लगभग समुद्र तल का एक तिहाई ऑक्सीजन ही उपलब्ध होता है जिसमें व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में पर्वत पर चल पाता है माउंट एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए ट्रेनर होते हैं, जिन्हें शेरपा कहते हैं अपा शेरपा नामक एक व्यक्ति जिसने सर्वप्रथम 10 मई 1990 में इस चोटी पर चढ़ा था और अभी तक वह लगभग 20 बार इस चोटी पर चढ़ चुका है।
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माउंट एवरेस्ट का वातावरण तथा जलवायु
हिमालय में स्थित माउंट एवरेस्ट पूरी तरह से ग्लेशियर बना हुआ है, इसके ऊपर लगभग 6 से 7 मीटर तक बर्फ की परत चढ़ी हुई है इसलिए यहां पर किसी भी प्रकार के जीवन का होना संभव नहीं है। एवरेस्ट के निचले हिस्सों में तिब्बती भाषी लोग रहते हैं जो अधिकतर शेरपा है, जो नेपाल की खुंबू घाटी मैं लगभग 4270 मीटर की ऊंचाई की घाटियों में तथा गांव में रहते हैं एवरेस्ट की ढलानें ग्लेशियर से ढकीं हुईं हैं। माउंट एवरेस्ट पर्वत के पूर्व में कंगशुंग ग्लेशियर है; पूर्व, मध्य, और पश्चिम में रोंगबुक (रोंगपू) ग्लेशियर है इसके अलावा माउंट एवरेस्ट पर पुमोरी ग्लेशियर और खुम्बु ग्लेशियर उपस्थित है माउंट एवरेस्ट का वातावरण इंसानों के लिए सुयोग्य नहीं है। इसलिए लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई के पश्चात माउंट एवरेस्ट में जीवन नहीं पाया जाता है। लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई पर कोई भी पेड़ पौधा नहीं होता है माउंट एवरेस्ट की ऊपरी शिखर सख्त पत्थर जैसी बर्फ से ढका हुआ है तथा उसके ऊपर नरम बर्फ की एक परत फैली हुई है, जिसमें लगभग 5 से 20 3:00 तक का उतार-चढ़ाव होता रहता है सितंबर से पर्वत की चोटी पर भयानक र्फ बारी प्रारंभ होती है। माउंट एवरेस्ट का ऊपरी शिखर पृथ्वी के वायुमंडल में इतना ऊपर स्थित है कि वहां पर समुद्र तल की अपेक्षा एक तिहाई ऑक्सीजन सांस लेने के लिए उपलब्ध है इसलिए ऑक्सीजन की कमी, तेज सर्द हवाएं, तथा बेहद ठंडे तापमान लगभग माइनस 36 डिग्री सेंटीग्रेड मैं किसी भी प्रकार के पेड़ पौधे या जीव का जीवन संभव नहीं है। इसलिए माउंट एवरेस्ट की चोटी पर किसी प्रकार का कोई भी जीवन नहीं पाया जाता है माउंट एवरेस्ट की निचली घाटियों में लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई तक पेड़ पौधे तथा लोग रहते हैं।
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़ने वाले अब तक के अन्य प्रमुख लोग
जैसा कि उपरोक्त बताया गया है कि माउंट एवरेस्ट पर अब तक लगभग 7600 लोग जा चुके हैं जिसमें लगभग 300 लोगों ने माउंटेन की चढ़ाई करते वक्त अपनी जान गवा दी है, इसलिए माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करके इसकी चोटी पर पहुंचना बहुत ही मुश्किल माना जाता है क्योंकि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर ऊंची है, जिसके कारण 5000 मीटर के पश्चात माउंट एवरेस्ट पर केवल ग्लेशियर पाए जाते हैं, और यहां का तापमान इतना कम होता है कि किसी भी प्रकार के पेड़ पौधे तथा जीव का जिंदा रहना बहुत मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि पृथ्वी की सतह की अपेक्षा माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर एक तिहाई ऑक्सीजन उपलब्ध है क्योंकि माउंट एवरेस्ट की चोटी पृथ्वी के वायुमंडल से बहुत दूर है, इसलिए इसकी ऊंचाई पर जाने के लिए बोतलबंद ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है, इसके अलावा इसमें लगने वाला लंबा समय जो कि 50 दिन का है इतने दिनों तक के लिए खाना और पानी की व्यवस्था साथ में रखना और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल है फिर भी बहुत सारे लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाते हुए अभी तक लगभग 76 सौ लोगों ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की है, यह लोग पूर्णता ट्रेंड होते हैं और इनके साथ ट्रेनर या शेरपा होते हैं जो इनको माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़ने के लिए ट्रेनिंग देते हैं और चढ़ने वाले लोगों का गाइड करते हैं। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले कुछ विशेष लोग निम्नलिखित हैं
- 20 मई, 1965 शेरपा नवांग गोम्बू।
- 16 मई, 1975 जापान कि जुंको ताबेई माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली विश्व की प्रथम महिला।
- 3 मई 1980 जापानी पर्वतारोही यासुओ काटो शिखर तक पहुंचने वाले पहले गैर-शेरपा हैं।
- 20 अगस्त, 1980 रीइनहोल्ड मेस्नर शिखर में पहुंचने वाले पहले सोलो व्यक्ति है।
- 1996 में चढ़ाई का मौसम एक साल में एवरेस्ट पर चढ़ते समय लगभग 16 लोगों ने अपनी जान गवां दी थीं। तूफान के दौरान 10 मई को आठ पर्वतारोही पहाड़ चढ़ते समय मर गए थे। बचे हुए लोगों में से एक, पत्रकार जॉन क्रैकॉयर ने “आउटसाइड” नमक पत्रिका के लिए एक असाइनमेंट पर अपने अनुभव के बारे में बेस्टसेलर किताब “इन्टो थिन एयर” लिखी थी।
- 22 मई, 2010 अपा शेरपा, जो पहली बार 10 मई 1990 को पर्वत पर चढ़ा था।
निष्कर्ष
माउंट एवरेस्ट विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में है जिसकी ऊंचाई 8848.86 मीटर है जिसमें लगभग 7600 लोगों ने इस पर चढ़ने का रिकॉर्ड बनाया है, इस चोटी पर 5000 मीटर के पश्चात किसी भी प्रकार का कोई भी जीव जीवित नहीं रह सकता है, क्योंकि 5000 मीटर के पश्चात इस पर्वत चोटी पर केवल ग्लेशियर पाए जाते हैं। इसलिए इस पर्वत चोटी पर चढ़ना चुनौतीपूर्ण माना जाता है। अब तक लगभग 300 लोगों ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़ते हुए अपनी जान गवा दी है। माउंट एवरेस्ट चीन तिब्बत तथा नेपाल की सीमा को विभाजित करता है इसलिए इसे भारत का पहरेदार भी माना जाता है, यह पर्वत चोटी हिमालय पर्वत श्रंखला की सबसे ऊंची चोटी है। यदि इसके इतिहास के बारे में बात की जाए तो लगभग 40 से 50 मिलियन वर्ष पूर्व हिमालय तथा माउंट एवरेस्ट पर्वत के स्थान पर टेथिस सागर हुआ करता था जिसमें पृथ्वी की आंतरिक हलचलो तथा अन्य आंतरिक क्रियाओं के कारण इन में कंपन उत्पन्न हुआ और अधिक दबाव के कारण परवलयाकार आकार में परिवर्तित होना शुरू हो गए तथा आधुनिक समय में माउंट एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी के रूप में परिवर्तित हो गया ऐसा माना जाता है, कि आज भी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई प्रतिवर्ष लगभग 1 इंच बढ़ रही है, उपरोक्त लेख में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई तथा उससे संबंधित विभिन्न तथ्यों के बारे में जानकारी प्रदान की गई है जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी हो सकती है।
लोगों द्वारा पूछे गए प्रश्न
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई कितनी है 2023 में?
1999 में अमेरिकी ज्योग्राफिकल एजेंसी तथा अन्य विभिन्न एजेंसियों के सहयोग से माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को नापा गया था, जिसमें माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848.86 मीटर ऊंची है, जो लगभग प्रतिवर्ष 1 इंच के हिसाब से बढ़ रहे हैं ऐसा विभिन्न विशेषज्ञों का मानना है।
माउंट एवरेस्ट कौन से देश में है?
माउंट एवरेस्ट का एक हिस्सा नेपाल तथा दूसरा हिस्सा चीन में उपलब्ध है तथा इसका कुछ हिस्सा तिब्बत में भी पाया जाता है, किंतु मुख्य रूप से माउंट एवरेस्ट को चीन तथा नेपाल का हिस्सा माना जाता है और माउंट एवरेस्ट चीन और नेपाल की सीमा रेखा का विभाजन भी करता है।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला कौन है?
भारत की माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम महिला बछेंद्री पाल हैं, उन्होंने ‘भारत-नेपाली महिला माउंट एवरेस्ट अभियान’ का सफलतापूर्वक नेतृत्व में किया है और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के पश्चात भी काफी लंबे समय तक सक्रिय रही हैं।
विश्व की सबसे ऊंची चोटी का नाम क्या है?
विश्व की सबसे ऊंची चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट है इसकी ऊंचाई 1955 में 8848 मीटर ऊंची बताई गई थी जो लगभग 1999 में 8848.86 मीटर ज्ञात की गई है, इसका मुख्य कारण प्रतिवर्ष माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में 1 इंच की बढ़ोतरी है विशेषज्ञों का मानना है कि माउंट एवरेस्ट प्रतिवर्ष 1 इंच के लगभग बढ़ रहा है।